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सूना घोंसला / नंदकिशोर आचार्य
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गाते रहते पाखी
हरे कभी तो झरे पत्तों में
कभी
—कितने सुरों में
खिलता रहता जंगल
और एक यह मैं हूँ
उजड़ी हुई बगिया में
सूना घोंसला कोई—
तिनके बिखेरती रहती है
जिसके
हवा चुपचाप
—
8 मई 2010