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ख़ामोशी हो चाहे / नंदकिशोर आचार्य

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शब्द को
लय कर लेती हुई
               ख़ुद में
ख़ामोशी क्या वही होती है
उस में खिल आती है

क्या हो जाता होगा
उस स्मृति का
शब्द के साथ जो
उस में घुल जाती है

तुम्हारा रचा शब्द हूँ
                  जब
और नियति मेरी
तुम्हारी लय हो जाना है—
ख़ामोशी हो चाहे
स्मृति मेरी
घुल रही है तुम में ।

16 मई 2009