भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ तो झाँके / नंदकिशोर आचार्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:24, 5 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=केवल एक प...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

औंधा मत रखो
               घड़े को
                रेत पर
—न हो आसार
एक भी बूँद का चाहे

घड़े की दुनिया में
कुछ तो झाँके आकश
—न सही बारिश-सा
धूप और हवा-सा ही सही ।

13 जुलाई 2009
—————————
प्रभात त्रिपाठी की कविता ’पानी’ (एक) की ये पंक्तियाँ पढ़ कर :
’और अपनी प्यास के नसीब में तो
रेत पर औंधा पड़ा एक खाली घड़ा है ।’