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इस मुस्कराहट पर / नंदकिशोर आचार्य

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कब से मना रहा हूँ उसे
और वह है कि देती ही नहीं
                       मन कर
बैठी है मुँह फुलाए हुए

’ठीक है तो’
झुँझला कर उठ गया हूँ जब
थाम लेती अँगुली मेरी
कुछ भी पर कहती नहीं है
                      मृत्यु—
देखती हुई मेरी ओर
चुप है मुस्कराती हुई

अब इस मुस्कराहट पर
कौन है
जो न मर जाए !

9 जून 2010