भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झलक आती / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:43, 6 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=केवल एक प...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ने अँधियारे जंगल बीच
बहा जाता गो गुपचुप
कहीं झलक-सा जाता है
वह जल
तुम्हारी आँख में ज्यों
झलक आती
कभी कोई बूँद ।
—
5 नवम्बर 2009