भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शिशुओं के लिए पाँच कविताएँ-1 / बालकवि बैरागी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:48, 7 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालकवि बैरागी }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> 1. तितली ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.

तितली करती ताथा थैया,
भँवरा करता गुन गुन गुन ।
खिलकर हँसते फूल हमेशा,
कलियाँ कहतीं हमे न चुन ।।

2.

जब से हम स्कूल गए हैं,
खेल-कूद सब भूल गए हैं ।
सब कहते हैं- पढ़ो-पढ़ो,
एक हिमालय रोज़ चढ़ो ।।

3.
माली वो जो जड़ को सींचे
हर डाली को प्यार करे ।
कली-कली को फूल बनाए,
ख़ुशबू का सत्कार करे ।।

4.

पेड़ हमें देते हैं फल,
पौधे देते हमको फूल ।
मम्मी हमको बस्ता देकर
कहती है जाओ स्कूल ।।

5.

कोयल कुहू-कुहू कर गाती
मीठे सुर में गाती मैना ।
काँव-काँव करते कौवे को
मौसम से क्या लेना-देना ?