भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आकांक्षा / रामनरेश त्रिपाठी
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:12, 7 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश त्रिपाठी |संग्रह=मानसी / र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
होते हम हृदय किसी के विरहाकुल जो,
होते हम आँसू किसी प्रेमी के नयन के।
पूरे पतझड़ में बसंत की बयार होते,
होते हम जो कहीं मनोरथ सुजन के॥
दुख-दलियों में हम आशा कि किरन होते,
होते पछतावा अविवेकियों के मन के।
मानते विधाता का बड़ा ही उपकार हम,
होते गाँठ के धन कहीं जो दीन जन के॥