भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मनुष्य-पशु / रामनरेश त्रिपाठी
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:43, 8 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश त्रिपाठी |संग्रह=मानसी / र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बक सा छली है कोई, गाय सा सरल कोई,
चूहे सा चतुर कोई, मूढ़ कोई खर सा।
काक सा कुटिल मधु-मक्खी सा कृपण कोई,
मोर सा गुमानी कोई लोभी मधुकर सा॥
श्वान सा खुशामदी कबूतर सा प्रेमी कोई,
स्यार सा है भीरु कोई वीर है बबर सा।
कैसा है विचित्र यह मानव-समाज, कोई
तेज तितली सा कोई सुस्त अजगर सा॥