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ताँका-49-54 / भावना कुँअर

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माँ बीमार
बिखरती है साँस
परदेस बेटा
वो आएगा जरूर
न छोड़ पाए आस
 50
खूब ही हुई
कोहरे से लड़ाई
गुस्सैल धूप
वो जादू भरी झड़ी
कहती भूल आई
 51
अटारी चढ़
धूप, शोर मचाए
कहती जाए
दूँगी न अपनी मैं
चमचमाती छड़ी
 52
नैन झील में
तैरते रहे मोती
भावों से घिरी
पतवार, लिए मैं
उनको रही खेती
 53
कोहरा भरा
सूरज़ की फैक्ट्री में
बोले उदास-
बाटूँगा कैसे अब
मैं,गरम लिबास
54
आज़ फिर माँ
अनाज़ सुखाएगी
वो कबूतरी
पल भर में सब
चट कर जाएगी
-0-