भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आश्चर्य / रामनरेश त्रिपाठी

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:30, 9 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामनरेश त्रिपाठी |संग्रह=मानसी / र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बार बार उचक उचक लहरों में सिंधु
देखता किसे है बड़ी गहरी लगन से।
जाता है सवेरे प्रति दिवस कहाँ समीर,
राज-कर लेकर सुरभि का सुमन से?
कौन है? कहाँ है? वह जिसकी उतारते हैं
रवि शशि तारागण आरती गगन से?
दीप पाके बुद्धि का अँधेरे पथ में मनुष्य
पूछता नहीं क्यों एक बार निज मन से?