भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किवाड़ / संध्या गुप्ता
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:05, 12 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संध्या गुप्ता }} {{KKCatKavita}} <poem> इस भारी ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
इस भारी से ऊँचे किवाड़ को देखती हूँ
अक्सर
इसकी ऊँची चौखट से उलझ कर सम्भलती हूँ
कई बार
बचपन में इसकी साँकलें कहती थीं
- एड़ियाँ उठा कर मुझे छुओ तो!
अब यहाँ से झुक कर निकलती हूँ
और किवाड़ के ऊपर फ्रेम में जड़े पिता
बाहर की दुनिया में सम्भल कर
मेरा जाना देखते हैं !