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बीसवें अक्षांश में / रमेश रंजक
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आज बस इतिहास की बातें करो
मानचित्रों में न ढूँढ़ो
शर अपना, गाँव अपना
बीसवें अक्षांश में
देखो न मछली का तड़पना
प्यास में परिहास की बातें करो
गति नहीं बोली कभी
भूगोल में यह मान जाओ
तंत्रधर्मा मंत्र हैं—
इतिहास कंधों पर उठाओ
बन्धु ! तुलसीदास की बातें करो