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मछली-सी परेशानी / रमेश रंजक
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दोपहर में हड्डियों को शाम याद आए
डूबते ही दिन हज़ारों काम याद आए
काम भी ऐसे कि जिनकी आँख में पानी
और जिसके बीच मछली-सी परेशानी
क्या बताएँ किस तरह से ’राम’ याद आए
घुल गई जाने कहाँ से ख़ून में स्याही
कर्ज़ पर चढ़ती गई मायूस कोताही
तीस दिन में एक मुट्ठी दाम याद आए