चार तिनके उठा के जंगल से एक बाली अनाज की लेकर चाँद कतरे बिलखते अश्कों के चाँद फांके बुझे हुए लब पर मुट्ठी भर अपने कब्र की मिटटी मुट्ठी भर आरजुओं का गारा एक तामीर की लिए हसरत तेरा खानाबदोश बेचारा शहर में दर-ब-दर भटकता है तेरा कांधा मिले तो टेकूं!
चार तिनके उठा के जंगल से एक बाली अनाज की लेकर चाँद कतरे बिलखते अश्कों के चाँद फांके बुझे हुए लब पर मुट्ठी भर अपने कब्र की मिटटी मुट्ठी भर आरजुओं का गारा एक तामीर की लिए हसरत तेरा खानाबदोश बेचारा शहर में दर-ब-दर भटकता है तेरा कांधा मिले तो टेकूं!