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एक दीगर मार / रमेश रंजक

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सह रहा हूँ
एक दीगर मार...
क़ैदख़ाने के झरोखे से
        वही तो कह रहा हूँ

दीखते...
मुस्तैद पहरेदार,
कंठीदार तोते,
        टूटते लाचार खोखे

कुछ न पूछो
किस तरह से दह रहा हूँ
                 सह रहा हूँ

चन्द बुलडोजर
सड़क की पीठ पर तैनात,
हाँफती-सी, काँपती-सी,
            आदमी की जात

उफ़ !
क़लम होते हुए
पाबन्दियों में रह रहा हूँ
               कह रहा हूँ...