Last modified on 13 दिसम्बर 2011, at 22:31

दिमागी मरुस्थल ! / रमेश रंजक

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:31, 13 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=मिट्टी बोलती है /...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दिमाग़ी मरुस्थल
पौदे लगाने से नहीं जाता

रोग भीतर, ऊपरी उपचार
शुद्ध अवसरवाद का हथियार

इस तरह का
नाट्य-रूपक नहीं भाता

नींद की ये गोलियाँ हैं व्यर्थ
खोजना है ज़िन्दगी का अर्थ—

उठ ! बदलने को
समूचा बही-खाता