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और गहरा खुल / रमेश रंजक

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जल नदी तट का, न नल का पी
पी सके दो घूँट— तल का पी

तिमिर डूबी हरी छाती
             भुरभुरी घाटी
और टूटी हुई
             फूटी हुई परिपाटी

रोशनी होगी— धुँधलका पी

ठोकरें इतिहास
             होने के लिए आकुल
खुल ज़रा-सा
             और गहरा और गहरा खुल

ठोकरों से न कर हल्का जी