भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझे क्या डर है / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:18, 14 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=मिट्टी बोलती है /...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेंहदी कह चुकी है
कह रही है— मुझे क्या डर है

धूप हो या शीत हो, बरसात
सुनो ! मेरी क्रान्तिधर्मी जात
खड़ी हूँ जब तक, तुम्हारी हैज
देह मेरी फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तोड़कर जिस दिन मुझे
शैतान पीसेगा
उसी दिन उन उँगलियों पर
ख़ून दीखेगा

'हरापन' मेरा सफ़र है
और पिस जाना ख़बर है
             ...मुझे क्या डर है