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शब्दों को बच्चे सरीखा / रमेश रंजक

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शब्द को बच्चे सरीखा पालता हूँ
और फिर अपने मुताबिक ढालता हूँ

पालता हूँ इसलिए
मुझको कहे जी खोल कर
कसमसाती, छटपटाती
आस्था को तोल कर

और फिर हो जाए सबका
अर्थ ऐसा डालता हूँ

अर्थ को आकार
देने के लिए चलता रहे
आँधियों के, अँधड़ों के
बीच में जलता रहे

मैं मरूँ, मरने न दूँगा पर उसे
रोज़ जिसमें एक चिनगी बालता हूँ
शब्द को बच्चे सरीखा पालता हूँ