Last modified on 16 दिसम्बर 2011, at 15:20

जन के मन में / रमेश रंजक

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:20, 16 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=मिट्टी बोलती है /...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शब्द समय पी जाएँ लेकिन मरें नहीं
लाखों पतझर आएँ फिर भी झरे नहीं

इनको अपना चेहरा दे, अपनापन दे
जन के मन में उतरें ऐसा जीवन दे

जहाँ बिठा दें आना-कानी करें नहीं

पेट नहीं है देश अरे मूखबिर लेखन
शब्द माँगते थकन, शिकन, आधा वेतन

इतनी दे दे कुर्बानी ये डरें नहीं