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चुक गया दिन / अज्ञेय
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'चुक गया दिन'—एक लम्बी साँस
उठी, बनने मूक आशीर्वाद—
सामने था आर्द्र तारा नील,
उमड़ आई असह तेरी याद !
हाय यह प्रति दिन पराजय दिन छिपे के बाद !