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करो सहन / रघुवीर सहाय
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कष्ट गहन
करो सहन,
ओ रे मन ।
नहीं, नहीं, व्यथा में है सुख नहीं कोई व्यथा ही का
यह न समझ गौरव है दुख में, दुख की कथा ही का ।
सुने कौन ?
सभी निजी विरह व्यथा में मौन ।
मत कहो, सहो, सहो, सहो, रहो कि अभी है अस्पष्ट
क्या देता है कष्ट । करो वहन
माथे पर दिल का भार
जब तक प्रतिकार न हो, सहो, सहो
जब तक यह न हो बोध
मुझ में भी क्रोध
और लूँगा प्रतिशोध । और जब तक प्रतिशोध न हो
कष्ट गहन,
करो सहन,
ओ रे मन ।