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लन्दन डायरी-19 / नीलाभ
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बढ़ाते जा रहे हैं हाथ अपने ज़ुल्म के साये
मिटाते जा रहे हैं ज़िन्दगी को ज़ुल्म के साये
लगी है चोट दिल पर और भी चोटें
लगाते जा रहे हैं ज़ुल्म के साये
जिस्म बिखरे हैं सड़क पर
बम बरसते हैं सड़क पर
ख़ून खिलता है सड़क पर
यह सड़क बेरूत से फैली हुई है
दूर सल्वादोर तक
ज़िन्दगी औ’ मौत की जो कशमकश है
उस लड़ाई के कठिनतम छोर तक