भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मन! कितना अभिनय शेष रहा / भारत भूषण
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:41, 19 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारत भूषण }} {{KKCatGeet}} <poem> मन! कितना अभिनय...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मन!
कितना अभिनय शेष रहा
सारा जीवन जी लिया, ठीक
जैसा तेरा आदेश रहा!
बेटा, पति, पिता, पितामह सब
इस मिट्टी के उपनाम रहे
जितने सूरज उगते देखो
उससे ज्यादा संग्राम रहे
मित्रों मित्रों रसखान जिया
कितनी भी चिंता, क्लेश रहा!
हर परिचय शुभकामना हुआ
दो गीत हुए सांत्वना बना
बिजली कौंधी सो आँख लगीं
अँधियारा फिर से और लगा
पूरा जीवन आधा–आधा
तन घर में मन परदेश रहा!
आँसू–आँसू संपत्ति बने
भावुकता ही भगवान हुई
भीतर या बाहर से टूटे
केवल उनकी पहचान हुई
गीत ही लिखो गीत ही जियो
मेरा अंतिम संदेश रहा!