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अंतिम अनुभव / जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद'
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प्राणों की यह अमर प्यास ही जब प्रेमामृत-कण हो
नयनों की अनिमेष प्रतीक्षा ही तेरा दर्शन हो
श्रवणों की आकुलता ही तव पद-ध्वनि, जीवन-धन हो
मेरा उत्सुक बाहुपाश ही तेरा आलिंगन हो
तेरा निविड़ मिलन बन जावे यह सूनापन कम हो
विरह-वेदना ही जब, प्रियतम, अनुभव चरम मिलन हो
उन तन्मय घड़ियों में तेरा आना और न जाना,
अपने में तुझको पाकर फिर तुझ में तुझको पाना।