Last modified on 23 दिसम्बर 2011, at 12:32

आलोक हो जितना / नंदकिशोर आचार्य

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:32, 23 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=केवल एक प...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कितना उदास फीका रहता है
                        वह
न हो आलोक जो
                उस पर
आलोक हो जितना
उतना ख़ुद को खोता जाता है
                        रँग

क्या करे लेकिन रँग—
खो जाना ही
ख़ुद को पाना हो जब ?

13 जुलाई 2009