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आलोक हो जितना / नंदकिशोर आचार्य

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कितना उदास फीका रहता है
                        वह
न हो आलोक जो
                उस पर
आलोक हो जितना
उतना ख़ुद को खोता जाता है
                        रँग

क्या करे लेकिन रँग—
खो जाना ही
ख़ुद को पाना हो जब ?

11 जनवरी 2010