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धड़कन / देविंदर कौर
Kavita Kosh से
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अरदास उदास है
उसमें बोले जा रहे शब्द
उसको स्मरण कराते हैं
अपनी माँ का
बेरहमी के साथ
मर रही हसरतें
अपनी नानी के
सिकुड़ रहे शरीर में से
घुट-घुट जाती रूह
कभी कभी जब वह
मन के गुरुद्वारे में बैठकर
‘कीर्तन सोहिले' का
पाठ करती है
कर लेती है मन शांत
फिर भी...
उसको लगती है
शांति में से निकल रहे
सेक की भाप
वह अपने अन्दर ही
कहीं भरती रहती है
कितना कुछ
सह सकती है वह
अपने हिस्से की उदासी
या सारे गाँव की अरदास में से
फैल रही धुएँ से भरी हवा
शांति तो बस
निरी 'ओम शांति' है
अरदास तो निरी शांति है
और
वह...
रूह की धड़कन
तलाश रही है !