भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर गोप्यां क चोरी करता / शिवदीन राम जोशी
Kavita Kosh से
Kailash Pareek (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:04, 28 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी {{KKCatRajasthan}} <poem> घर गोप्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
{{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
घर गोप्यां क चोरी करता।
सांची कहिज्येा, कहि द्योनां, चौरी भी बरजोरी करता।
श्री राधेजी सरमां जाता, पर थे चोर-चोर दही खाता,
नंद यसोदा के गम बैठ्यो, गोप्यां का वे पांव पकरता।
गुवाल बाल भी डुक्का देता, हारयां भी ब मुक्का देता,
पर थे चोरी छोड़ सक्या नां खाता माखन डरता-डरता।
वृज का लोग बाग सब सहता, तुमको चोर चोर सब कहता,
नाम धराया धन्य कन्हैया, मौर मुकुट माथे पर धरता।
पुर्ण ब्रह्म शिवदीन कन्हैया, पार लगाना मेरी नैया,
वेद भेद पाया ना तेरा, भक्त जनों का तू दुःख हरता।