भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़ादे-सफ़र / मख़्मूर सईदी

Kavita Kosh से
Tripurari Kumar Sharma (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:16, 31 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मख़्मूर सईदी }} {{KKCatNazm}} <poem> अजनबी चेहरो...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अजनबी चेहरों के फैले हुए इस जंगल में
दौड़ते भागते लम्हों के दरीचे से कभी
इत्तेफ़ाक़न तेरी मानूस शबाहत की झलक
पर्द-ए-चश्मे-तख़य्युल प’उभर कर ऐ दोस्त
डूब जाती है उसी पल, उसी साअत, जैसे
तेज़रौ रेल की खिड़की से, ज़रा दूरी पर
किसी सेहरा की झुलसती हुई वीरानी में
नागहाँ मंज़रे-रंगी कोई दम भर के लिए
इक मुसाफ़िर को नज़र आए और ओझल हो जाए