Last modified on 1 जनवरी 2012, at 04:33

वह अपना हिसाब माँगेगा / फ़रीद खान

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:33, 1 जनवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़रीद खान |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> जिसे...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जिसे पता ही नहीं कि उसे बेच दिया गया है,
और एक दिन राह चलते अचानक ही उसे किसी ग़ैर से पता चले
कि उसे बेच दिया गया है ।
तो आज नहीं तो कल,
वह अपना हिसाब माँगेगा ही ।

पानी अपना हिसाब मागेगा एक दिन ।
लौट कर आएगा पूरे वेग से,
वापस माँगने अपनी ज़मीन ।