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जाने क्या एक कोमल चीज़ / समीर बरन नन्दी
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पूरब-पश्चिम
जिधर देखो सूरज वलय
गोल ही रहता है
उसकी लालिमा
मुझे भाती है
उत्तर रहूँ या दक्षिण
घर रहूँ या बाहर
जाने क्या एक कोमल चीज़ है मेरे पास
जो उससे लुकाता फिरता हूँ
कुछ उजाले भी है
मेरे पास उसके लिए
नहीं जानता वह सुबह है या शाम
सभी, सब कुछ नहीं दे सकते
तुम कविता में—
उजास दो !