Last modified on 2 जनवरी 2012, at 23:19

धान रोपती स्त्री / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:19, 2 जनवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी |संग्रह=बे...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वह गाड़ी की ओर नहीं देखती
गाड़ी धड़धड़ाती हुई निकल जाती है उसके सामने से

गाड़ी के लोग उसकी ओर देख रहे हैं
पानी और कीचड़ में सनी
उसकी पिण्डलियाँ दीख रही हैं
उसके जाँघ गोरे हैं
गाड़ी में बैठी गोरी मेम की तरह

वह कछोटा मारे
ज़मीन में धँसी
अपना भविष्य रोप रही है

वर्तमान भागा जा रहा है उसके सामने से
वह मिट्टी में क्या ढूँढ़ रही है ?

गाड़ी रोज़ ऐसे ही भागती चली जाती है
उसके सामने से
गाड़ी में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं

वह धान रोपती स्त्री
सिर्फ़ धान रोपती है ।