भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लहरें / ज्यून तकामी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:50, 8 जनवरी 2012 का अवतरण
|
तूफ़ान आया है
भयानक तूफ़ान
मैं खिड़की से झाँकता हूँ--
ढलान पर खड़ा पेड़
तेज़ लहरों की तरह लहरा रहा है
पेड़ की पत्तियाँ लहरें हैं हमारी इस धरती की
वैसे ही जैसे
लहरें पत्तियाँ हैं समुद्र की
ओ समुद्र की पत्तियों !
तुम्हें याद करता हूँ मैं
जैसे पेड़ पत्तियों को जीवन देता है
वैसे ही समुद्र लहरों को पालता है
तूफ़ान मेरी खिड़की पर थपेड़े मार रहा है
समुद्र है तो तूफ़ान आएगा ही
जीवन है तो तूफ़ान छाएगा ही
ओ हवा के थपेड़ों से लड़ती पत्तियों !
ओ सागर से हमेशा झगड़ती लहरों !
मानव-जीवन भी तुम्हारी तरह है
थपेड़े खाता रात-दिन
रह नहीं पाता उनके बिन
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय