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कलमुँही इकाई / रमेश रंजक

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एक दिया बाँध दिया
             जीवन के साथ ।

बुझने की घड़ी नहीं आई
धूप किसी रात ने चुराई
बिफर गई कलमुँही इकाई

उजियारा : किरणों के
                 कटे-कटे हाथ ।

गीत गए लौट कर न आए
नीड़ों में पंख फड़फड़ाए
दुहरे संताप में नहाए

टूटे स्वर : अर्द्धलिखित
               छन्द से अनाथ ।