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लड़खड़ा कर सँभल रही होगी / बल्ली सिंह चीमा

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लड़खड़ा कर सँभल रही होगी ।
बात रुक-रुक के चल रही होगी ।

तेज़ होगा बहाव दरिया का,
बर्फ़ हर पल पिघल रही होगी ।

क्यों अँधेरा घना हुआ फिर से,
रात करवट बदल रही होगी ।

घर तो जल कर हैं कब के राख हुए,
आग सीनों में जल रही होगी ।

गाँव-बस्ती के ठण्डे चूल्हों में,
इक बग़ावत भी पल रही होगी ।