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तानाशाह के बावजूद / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

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तानाशाह
यही होना था एक दिन
तुम्हारे साथ

धरती घूम रही है अपनी धुरी पर
उग रहा है भोर का सूरज

बादल घुमड़ रहे हैं बरसने को
लहरा रहीं वनस्पतियाँ पुरवा में

समुद्र दहाड़ रहा है
हंस उड़े जा रहे नदी पार

बरगद होता जा रहा है छितनार
गौरैया फुदक रही आँगन में

सुर्ख़ होता जा रहा है फूलों का रंग
तितलियाँ मँडरा रही हैं

गाढ़ा होता जा रहा है
फलों का रस

बच्चे दौड़ रहे हैं खेल के मैदानों में
लड़कियाँ कर रही हैं लड़कों से प्रेम

तानाशाह
यही होना था एक दिन तुम्हारे साथ
कि तुम्हारे बावजूद
यह सब हो रहा है ।