भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेमिका के लिए / विजय गौड़
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:04, 15 जनवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय गौड़ |संग्रह=सबसे ठीक नदी का र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मैं भूल चुका हूँ
उस बीते हुए समय में
कही और सुनी गई बातें,
नहीं भुला पाया हूँ
एक जोड़ी भूरी-भूरी नम आँखें,
गुथें हुए बालों की
एक जोड़ी चोटी
इतने दिनों बाद भी
नहीं लिख पाया हूँ
कोई ख़त, कोई कविता
उम्मीदों से भरे बचपन के क़िस्से ही
लिखता रहा हूँ आज तक
जबकि, पिता का प्यार भरा
गुस्सैल चेहरा
समा गया है मेरे भीतर
फिर भी, तुम जहाँ हो
रहेगा वहीं
मेरी जिन्दगी का
सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा;
अमरूद के सख़्त तने-सा