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दो-चार गाम / निदा फ़ाज़ली

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दो-चार गाम राह को

हमवार देखना

फिर हर क़दम पे इक नयी

दीवार देखना |


आँखों की रौशनी से है

हर संग आइना

हर आईने में खुद को

गुनाहगार देखना |


हर आदमी में होते हैं

दस-बीस आदमी

जिसको भी देखना हो

कई बार देखना |


मैदाँ की हार-जीत तो

क़िस्मत की बात है

टूटी है जिसके हाथ में

तलवार देखना |


दरिया के उस किनारे

सितारे भी फूल भी

दरिया चढ़ा हुआ हो तो

उस पार देखना |


अच्छी नहीं है शहर के

रस्तों की दोस्ती

आँगन में फैल जाए न

बाज़ार देखना.....!