भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपना सा हर शख्स हुआ है /वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
Kavita Kosh से
Tanvir Qazee (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:56, 17 जनवरी 2012 का अवतरण
अपना सा हर शख़्स हुआ है
ये कैसा उन्माद जगा है
सुख से है सौतेला रिश्ता
दुख जीवन का भाई सगा है
शिक्षा के प्रति देख समर्पण
वज़नी बच्चे से बस्ता है
आ मालूम करें असलीयत
बैनर का उन्वान भला है
अगला दिन अच्छा गुज़रेगा
हर दिन ये अनुमान मरा है