भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक लड़की / हरे प्रकाश उपाध्याय
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:06, 19 जनवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरे प्रकाश उपाध्याय |संग्रह=खिलाड...' के साथ नया पन्ना बनाया)
एक लडकी
सुनती है , देखती है
कि गर्भ में मार दी जा रही
हैं लडकियां
वह सोचती है
वह भी गर्भ में ही
मार दी गयी होती तो.......
यह मर्दानी दुनिया
ये दबाव दुख.....
वह सोचकर
हँसती है न रोती है
चादर तानकर चुप सो
लेती है....!