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वक्फ़-ए-हस्ती / रेशमा हिंगोरानी

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मेरी इस ज़िंदगी में चाहे खुशी हो कि न हो,
मुझे ग़मों से मेरे,
तुम जुदा न कर देना!

मुझे बेहद अज़ीज़ हैं ये वक्फ़-ए-हस्ती,
तिही-दामाँ मुझे,
मेरे ख़ुदा न कर देना!

ये छिन गए तो ज़िन्दगी में कुछ रहेगा नहीं,
क़िताब-ए-ज़िंदगी में हाए, कुछ सजेगा नहीं!
क़िताब-ए-ज़िंदगी में हाए, कुछ सजेगा नहीं!

मार्च 1997