Last modified on 31 जनवरी 2012, at 21:18

जब शुरू में रफ़्ता- रफ़्ता बोलता है / नीरज गोस्वामी

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:18, 31 जनवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज गोस्वामी }} {{KKCatGhazal}} <poem> जब शुरू म...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


जब शुरू में रफ़्ता- रफ़्ता बोलता है
मुँह से बच्चे के फ़रिश्ता बोलता है

जो भी सिखला दे उसे मालिक, वही सब
कैद में मजबूर तोता बोलता है

सैर को जब आप जाते हैं चमन में
तब सुना है पत्ता पत्ता बोलता है

हूं भले मैं पुरख़तर पर पुरसुकूं हूं
बात ये नेकी का रस्ता बोलता है
पुरख़तर : खतरों भरा

आंकड़ों से लाख हमको बरगलाएं
पर हकीकत हाल खस्ता बोलता है

भूल मत जाना कभी माज़ी की भूलें
वक्त ये सबका गुजिश्ता बोलता है


आइना बन कर दिखाएँ आप ‘नीरज’
सच जो होकर भी शिकस्ता, बोलता है