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आने को कहना / ठाकुरप्रसाद सिंह

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आने को कहना

पर आना न जाना

पर्वत की घाटियाँ जगीं, गूँजीं

बार-बार गूँजता बहाना


झरते साखू-वन में

दोपहरी अलसाई

ढलवानों पर

लेती रह-रह अंगड़ाई

हवा है कि है

केवल झुरमुर का गाना

बार-बार गूँजता बहाना