भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसको मंगल गीत सुनाएँ/जय कृष्ण राय तुषार

Kavita Kosh से
राणा प्रताप सिंह (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:55, 7 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('<poem>किसको गीत सुनाएं मौसम बहरा है | असमंजस की छत के नी...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसको
गीत सुनाएं
मौसम बहरा है |

असमंजस की
छत के नीचे
रिश्ते -नाते हैं ,
घुटन -बेबसी
ओढ़े हम सब
हँसते -गाते हैं ,
पल -पल
अपने ऊपर बस
तिथियों का पहरा है |

बाप -मतारी
बीवी -बच्चे
भाई के ताने ,
अलग -अलग
हैं जुमले सबके
अलग -अलग माने ,
गिरगिट जैसा
रंग बदलता
अपना चेहरा है |

अँधियारा है
अपने मन का
सूरज अंधा है ,
जो भी टूटा है
वह समझो
अपना कंधा है ,
पोखर के
पानी सा अपना
जीवन ठहरा है |

त्योहारों -
ऋतुओं का
अब भी आना -जाना है ,
बेबस
सबकी बाट
जोहता तालमखाना है |
जीवन का
यह कुआँ
न जाने कितना गहरा है |