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भूल की भरमार / नाथूराम शर्मा 'शंकर'
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भारी भूल में रे,
भोले भूले-भूले डोलें।
डाल युक्ति के बाट न जिसको, तर्क-तुला पर तोलें,
अन्धों की अटकल से उसको, टेक टिकाय टटोले।
पाय प्रकाश सत्य-सविता का, आँख उलूक न खोलें,
अभिमानी अन्धेर अधम की, जाग-जाग जय बोलें।
पोच प्रपंच पसार प्रमादी, झंझट को झकझोलें,
स्वर्ग-सहोदर प्रेमामृत में, वज्र वैर-विष घोलें।
हम तो शठता त्याग सँगाती, सदुपदेश के होलें,
‘शंकर’ समता की सरिता में, तन, मन, वाणी घोलें।