भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आकांक्षा / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:27, 8 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर सक्सेना |संग्रह=रात जब चन्द...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हम देखें वह दृश्य,
जो हमारे देखे तमाम दृश्यों से अधिक
ख़ूबसूरत और मनहर है,
बोलें हम बोल
जो मीठे हैं हमारे बोले गए
तमाम बोलों से,
मुस्कुराएँ हम
तो हमारी मुस्कान में सम्मिलित हों
किसी और के होंठ
हम उस धड़कन को जिएँ
जिसमें गुँथी होती है
किसी और की धड़कन