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सिर्फ पलायन है !!! / रश्मि प्रभा

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अपनों की परिभाषा
प्रश्न बन
विचारों की जननी होती है...


ये 'अपने' क्या होते हैं ?


जिनसे खून का रिश्ता होता है ?


रुको रुको
'हाँ' की मुहर लगाने से पहले
खुद को टटोलो
फिर कहो -


विचारों की जननी के यक्ष प्रश्न
खड़े हैं तुम्हारे आगे
या तो भीम की दशा पाओ
या युद्धिष्ठिर सा मान रखो ....


रक्त मोह और स्नेह संबंध में
हमेशा फर्क रहा है
खून के अपनेपन में यदि प्यार ना हो
तो संबंध कैसा !
उदाहरण सिर्फ इतिहास नहीं
तुम्हारा वर्तमान भी है -
फर्क ये है कि तुम उनको देखकर भी
आँखें मूंद लेते हो
पाप ( पाप ही है ) के भागीदार बनते हो


तुम्हें झकझोरने के लिए
इतिहास के पन्ने फड़फड़ाने पड़ते हैं ....
कृष्ण देवकी कृष्ण यशोदा
देवकी का दर्द अपनी जगह है
मान यशोदा का है ....
कृष्ण कंस - अन्याय के अंत का साक्ष्य !
कृष्ण सुदामा ... दोस्ती का सशक्त उदाहरण !
हिरन्यकश्यप - प्रहलाद - होलिका
जीत आराध्य की !
...... दुनिया उदाहरणों से भरी है
पर तुम उन उदाहरणों की लकीरें पिटते हो
जिनसे न संस्कारों की सुगंघ आती है
न संबंधों की खुशबू आती है
दुश्मनी सख्ती से निभाई जाती है
पर ....
यक्ष खड़ा है विस्मित प्रश्न लिए
और तुम निरुत्तर !
क्या यह निरुत्तरता
तुम्हारा खुद से पलायन नहीं ?


तुम संबंधों को जीना नहीं चाहते
ढोना चाहते हो
और दयनीयता , विवशता का रोना रोते हो !
सच पूछो तो दयनीयता , विवशता की अवधि
बहुत छोटी होती है
उसे नियति बनाना अपनी चाल होती है
.... भूख .......
सम्मान को घुटन मानने लगता है
पेट भरकर
डकार लेकर रोने में
एक नाटकीय सुकून मिलता है
.....
तुम जानते भी हो , नहीं भी जानते
कि तुम्हें क्या चाहिए .....
तुम अपने पूरे परिवेश को झूठा बनाकर
खुद मकड़ी बन जाते हो ....


चुप रहो-... बेहतर है
यक्ष तो तुम्हारा मन है
भटकने दो उसे
राजा जीमूतवाहन बनने की क्षमता
हर किसी में नहीं होती ...
तुम अच्छी तरह जानते हो
हरे रामा हरे कृष्णा गाना - सिर्फ पलायन है !!!

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