Last modified on 25 सितम्बर 2007, at 19:52

यह सुख सुनि हरषीं ब्रजनारी / सूरदास

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:52, 25 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} यह सुख सुनि हरषीं ब्रजनारी । देखन कौं धाईं बन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यह सुख सुनि हरषीं ब्रजनारी । देखन कौं धाईं बनवारी ॥
कोउ जुवती आई , कोउ आवति । कोउ उठि चलति, सुनत सुख पावति ॥
घर-घर होति अनंद-बधाई । सूरदास प्रभु की बलि जाई ॥


यह आनन्द-संवाद (कि कन्हाई ने आज स्वयं करवट ले ली है) सुनकर व्रजकी स्त्रियाँ हर्षित हो गयीं । वे वनमाली श्यामसुन्दरको देखने दौड़ पड़ीं।कोई युवती (नन्दभवनमें) आ गयी है, कोई आ रही है, कोई उठकर चली है, कोई समाचार सुनते ही आनन्दमग्न हो रही है । घर-घर आनन्द-बधाई बँट रही है । सूरदास अपने प्रभुपर बलिहारी जाता है ।