महरि मुदित उलटाइ कै मुख चूमन लागी ।
चिरजीवौ मेरौ लाड़िलौ, मैं भई सभागी ॥
एक पाख त्रय-मास कौ मेरौ भयौ कन्हाई ।
पटकि रान उलटो पर्यौ, मैं करौं बधाई ॥
नंद-घरनि आनँद भरी, बोलीं ब्रजनारी ।
यह सुख सुनि आई सबै, सूरज बलिहारी ॥
श्रीव्रजरानी (प्रभुको) उलटा करके (पीठके बल सीधे लिटाकर) आनन्दित होकर उनके मुखका चुम्बन करने लगीं । (बोलीं) `मेरा प्यारा लाल चिरजीवी हो ! मैं आज भाग्यवती हो गयी।मेरा कन्हाई साढ़े तीन महीनेका ही हुआ है, पर आज जानुओंको टेककर स्वयं उलटा हो गया । मैं आज इसका मंगल बधाई बँटवाऊँगी ।' आनन्दभरीश्रीव्रजरानी ने व्रजकी गोपियोंको बुलवाया । यह संवाद पाकर सब वहाँ आ गयीं । सूरदास इस छबिपर बलिहारी हैं।